रोहतांग पहाड़ियों में बनने वाली अटल टनल क्यों इतनी महत्वपूर्ण है कि इसका काम लॉक डाउन में भी चल रहा है?

          

                                                 हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में बन रही दुनिया की सबसे लंबी का सुरंग अटल टनल (Atal Tunnel) का काम तेजी से चल रहा है, इसका काम सितंबर तक पूरा होने का अंदाजा लगाया जा रहा है. देश में कोरोना वायरस (Coronavirus) के चलते लॉकडाउन (Lockdown) के कारण जहां एक और सभी काम बंद पड़े हैं वहीं दूसरी तरफ विशेष परमीशन लेकर इसके काम को चालू रखा गया. बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन ने बताया कि काम अभी ख़ास स्टेज पर है जिसे रोका नहीं जा सकता. इसमें लाइटिंग, वेंटिलेशन, इंटेलिजेंट ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम आदि फिट किए जा रहे हैं.
इस सुरंग बन जाने से मनाली और लेह की दूरी 46 किलोमीटर कम हो जाएगी.
टनल के एक तरफ चंद्रा नदी है, जिसे पार करके टनल तक आने के लिए 100 मीटर का स्टील का पुल भी बनाया जा रहा है. खराब मौसम की वहज से यात्रा में आने वाली दिक्कतें इस टनल के बन जाने से ख़त्म हो जाएंगी. सभी मौसम में लाहौल और स्पीति घाटी के सुदूर के क्षेत्रों में संपर्क आसान होगा.

ये टनल की खासियत
4 हजार करोड़ की लागत से बन रही इस टनल का काम इसी साल के अंत तक पूरा होना है. यह सुरंग 8.8 किलोमीटर लंबी है. यह 3,000 मीटर की ऊंचाई पर बनायी गयी दुनिया की सबसे लंबी सुरंग है. इससे सड़क मार्ग से मनाली से लेह की दूरी 46 किलोमीटर कम हो जाएगी. इससे हिमाचल प्रदेश के सुदूर सीमावर्ती क्षेत्रों और लद्दाख के बीच सभी तरह के मौसम में सड़क यातायात सुगम हो जाएगा. इससे पहले ठंड के मौसम में इन क्षेत्रों का संपर्क देश के अन्‍य हिस्‍सों से छह महीने तक पूरी तरह खत्‍म हो जाता था. एक अधिकारी ने बताया कि इसके निर्माण के दौरान सीमा सड़क संगठन को कई तरह की भौगोलिक और मौसम संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. खासतौर से सेरी नाला फॉल्‍ट जोन के 587 मीटर क्षेत्र में निर्माण कार्य काफी जटिल और मुश्किल भरा रहा. भारत करने जा रहा 30 साल का सबसे बड़ा एयरलिफ्ट, जानें कब पहुंचेंगी फ्लाइट्स
रोहतांग दर्रे के नीचे रणनीतिक महत्‍व की सुरंग बनाए जाने का ऐतिहासिक फैसला 3 जून 2000 को लिया गया था, जब वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे. रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा, सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के योगदान के सम्‍मान स्‍वरूप रोहतांग दर्रे के नीचे बनी रणनीतिक महत्‍व की सुरंग का नाम 25 दिसंबर को उनके नाम पर रखने का फैसला किया है. प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला किया गया.
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